जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है ये जो इक ग़ैर सा इस बज़्म में आ बैठा है उम्र-भर तू ने ज़माने का कहा माना है दिल की आवाज़ भी सुन देख तो क्या कहता है मिल भी जाए जो कोई नाव तो अब क्या हासिल अब तो दरिया मिरे दरवाज़े पे आ पहुँचा है उस ने दिल जान के छेड़ा उसे मा'लूम न था मेरे पहलू में दहकता हुआ अँगारा है मेरा जी जाने है या मेरा ख़ुदा जाने है क्या सुना है तिरे इस शहर में क्या देखा है हाए क्या दीदा-वरी है कि सहर-दम ये खुला जिस को हम शम्अ' समझते रहे परवाना है कोई रोए तो हँसो कोई हँसे तो रोओ आज के दौर में जीने का यही रस्ता है मेरे सीने में ख़ुनुक तीरगियाँ छोड़ गया एक आईना कि सूरज की तरह जलता है कोई बस्ती न कोई पेड़ न चश्मा कोई क़ाफ़िला उम्र-ए-रवाँ का ये कहाँ उतरा है जाह-ओ-मंसब की हवस हो तो मैं काफ़िर 'शोहरत' मैं सग-ए-कू-ए-अली हूँ मेरा क्या कहना है