जान-ए-बे-ताब अजब तेरे ठिकाने निकले बारिश-ए-संग में सब आइना-ख़ाने निकले सब बड़े ज़ोम से आए थे नए सूरत-गर सब के दामन से वही ख़्वाब पुराने निकले रात हर वादा-ओ-पैमान अमर लगता था सुब्ह के साथ कई उज़्र बहाने निकले ऐ किसी आते हुए ज़िंदा ज़माने के ख़याल हम तिरे रास्ते में पलकें बिछाने निकले कास-ए-दर्द लिए कब से खड़े सोचते हैं दस्त-ए-इम्कान से क्या चीज़ न जाने निकले हर्फ़-ए-इंकार सर-ए-बज़्म कहा मैं ने 'ज़फ़र' लाख अंदेशे मिरे दिल को डराने निकले