जाते जाते ये तकल्लुफ़ भी निभाते जाइए इश्क़ के ज़ुल्म-ओ-सितम सारे भुलाते जाइए मुफ़लिसों को इक ज़बाँ इस के लिए दे दी गई साहिबों की हाँ में बस हाँ हाँ मिलाते जाइए राह-ए-बर्बादी पे जाना है तो जाएँ शौक़ से हाँ मगर अपने ये नक़्श-ए-पा मिटाते जाइए सरहदें हो ख़त्म सारी ख़त्म हो सब भेद-भाव ख़ूँ से मेरे ऐसा इक नक़्शा बनाते जाइए गुफ़्तुगू करनी है संजीदा 'शफ़क़' से आप को शेर कहिए और ठहाके भी लगाते जाइए