जाती नहीं है उस की महक तक लिहाफ़ से आई थी एक बार परी कोह-ए-क़ाफ़ से आँखों में रौशनी का समुंदर उमड पड़ा जैसे ही उस बदन को निकाला ग़िलाफ़ से तुझ को कभी भी मेरी ज़रूरत नहीं रही मायूस हो गया हूँ मैं इस इंकिशाफ़ से तुझ से हमें शदीद मोहब्बत है इस लिए करते हैं इत्तिफ़ाक़ तिरे इख़्तिलाफ़ से ये सोच कर भी छत की मरम्मत न की 'ज़की' ताज़ा हवा तो आती रहेगी शिगाफ़ से