ज़ौ-फ़िशाँ सीने में सोज़-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ निकला दिल का हर दाग़ चराग़-ए-तह-ए-दामाँ निकला कोई भी जब न अनीस-ए-शब-ए-हिज्राँ निकला दर्द-ए-दिल ख़ुद ही मिरे हाल का पुरसाँ निकला जुस्तुजू में तिरी ऐ जल्वा-नुमा-ए-हस्ती कोई काफ़िर तो कोई बन के मुसलमाँ निकला मग़्फ़िरत को है मिरे नामा-ए-आमाल पे नाज़ जब न मुझ सा कोई आसूदा-ए-इस्याँ निकला पूछता क्या है हक़ीक़त मिरे जज़्ब-ए-दिल की दिल के हर क़तरे में सिमटा हुआ तूफ़ाँ निकला कितना वाबस्ता असीरी से था दौर-ए-हस्ती मर के ज़िंदाँ से असीर-ए-दर-ए-ज़िंदाँ निकला मैं ने जिस संग पे सज्दा किया जज़्ब-ए-दिल से वो भी मिनजुमला-ए-संग-ए-दर-ए-जानाँ निकला इस तरह ख़त्म हुई जब्र-ओ-क़दर की हुज्जत मेरी तक़दीर से साहिल पे भी तूफ़ाँ निकला बख़िया-गर ने मिरी जब जामा-दरी को देखा चाक-दामन की जगह चाक-गरेबाँ निकला ग़म नहीं साहिल-ए-दरिया की तुनुक-ज़र्फ़ी का डूबने वाला तो आसूदा-ए-तूफ़ाँ निकला सख़्ती-ए-हश्र-ओ-क़यामत मुझे वाइज़ तस्लीम और जो वाँ भी न जवाब-ए-ग़म-ए-जानाँ निकला रिफ़अत-ए-चर्ख़ हो या हो वो ज़मीं की वुसअ'त हामिल-ए-बार-ए-अमानत फ़क़त इंसाँ निकला हो चुका जामा-ए-वहशी का रफ़ू ऐ 'अफ़्क़र' अभी दामन न सिया था कि गिरेबाँ निकला