ज़ौक़-ए-सुजूद ले गया मुझ को कहाँ कहाँ लेकिन मिरे नसीब में वो आस्ताँ कहाँ बख़्शा है तेरे नक़्श-ए-क़दम ने जो ख़ाक-ए-कू वो हुस्न-ए-दिल-नवाज़ सर-ए-कहकशाँ कहाँ मैं सोचता हूँ आरिज़-ओ-गेसू को देख कर ठहरेगा सुब्ह-ओ-शाम का ये कारवाँ कहाँ ख़ुद से भी हो सकी न मुलाक़ात उम्र-भर अपनी तलाश ले गई मुझ को कहाँ कहाँ ईजाद कर रहे हैं वो जौर-ओ-सितम नए जौर-ओ-सितम से दबता है अज़्म-ए-जवाँ कहाँ मेरी निगाह-ए-शौक़ गदागर बनी हुई जल्वों की भीक माँग रही है कहाँ कहाँ है बाज़ यूँ तो अब भी दर-ए-मय-कदा 'नदीम' पहली सी वो नवाज़िश-ए-पीर-ए-मुग़ाँ कहाँ