जब आप से ही गुज़र गए हम फिर किस से कहें किधर गए हम क्या काबा ओ दैर ओ क्या ख़राबात तू ही था ग़रज़ जिधर गए हम आए थे मिसाल-ए-शोला सरगर्म जाते हुए जूँ शरर गए हम शबनम की तरह से उस चमन से होते ही दम-ए-सहर गए हम कुछ अपने तईं किया न मालूम क्या आप से बे-ख़बर गए हम जुज़ हसरत-ए-उम्र-ए-रफ़्ता अफ़्सोस कुछ आ के यहाँ न कर गए हम शैख़ी से गुज़र हुए क़लंदर बिगड़े थे पर अब सँवर गए हम इस दर्जा हुए ख़राब-ए-उल्फ़त जी से अपने उतर गए हम फ़ैज़ उस लब-ए-ईसवी का 'हातिम' बिल-अकस हुआ कि मर गए हम