जब आसमाँ ने नन्हे परिंदों को पर दिए ज़ालिम हवा ने तीर भी हम-राह कर दिए इस गुल्सिताँ से फ़ाख़्ता पर्वाज़ कर गई मौसम ने शाख़-सार भी काँटों से भर दिए हर शख़्स अहद-ए-जब्र में हर्फ़-ए-दुआ हुआ होंटों को हादसात ने क्या क्या हुनर दिए अपनी निगह के आईने सूरज को सौंप कर हम ने भी काएनात को आईना-गर दिए फिर आसमाँ के औज से शबनम अता हुई फिर मेरी पस्तियों ने मुझे बहर-ओ-बर दिए