जब अश्क तिरी याद में आँखों से ढले हैं तारों के दिए सूरत-ए-परवाना जले हैं सौ बार बसाई है शब-ए-वस्ल की जन्नत सौ बार ग़म-ए-हिज्र के शोलों में जले हैं हर आन उमंगों के बदलते रहे तेवर हर आन मोहब्बत में नई राह चले हैं महताब से चेहरे थे सितारों सी निगाहें हम लोग इन्ही चाँद सितारों में पले हैं नोचे हैं कभी हम ने हवादिस के गरेबाँ नाकामि-ए-कोशिश पे कभी हाथ मले हैं तारीक फ़ज़ाओं के उभरते रहे तूफ़ाँ फिर भी तिरी यादों के दिए ख़ूब जले हैं क्या जानिए ये रिंद बुरे हैं कि भले हैं साक़ी की निगाहों के इशारों पे चले हैं महसूस ये होता है कि दुनिया की बहारें उस गुल-कदा-ए-नाज़ के साए के तले हैं यूँही तो दिल-आवेज़ नहीं शेर-ए-'तबस्सुम' ये नक़्श तिरे हुस्न के साँचे में ढले हैं