जब भी घर की छत पर जाएँ नाज़ दिखाने आ जाते हैं कैसे कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं दिन भर जो सूरज के डर से गलियों में छुप रहते हैं शाम आते ही आँखों में वो रंग पुराने आ जाते हैं जिन लोगों ने उन की तलब में सहराओं की धूल उड़ाई अब ये हसीं उन की क़ब्रों पर फूल चढ़ाने आ जाते हैं कौन सा वो जादू है जिस से ग़म की अँधेरी सर्द गुफा में लाख निसाई साँस दिलों के रोग मिटाने आ जाते हैं ज़े के रेशमी रुमालों को किस किस की नज़रों से छुपाएँ कैसे हैं वो लोग जिन्हें ये राज़ छुपाने आ जाते हैं हम भी 'मुनीर' अब दुनिया-दारी कर के वक़्त गुज़ारेंगे होते होते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं