जब भी होता हूँ मैं अकेले में ख़ुद को खोता हूँ मैं अकेले में फ़स्ल उगाता हूँ यूँ हँसी की मैं अश्क बोता हूँ मैं अकेले में जो रटे नाम बस तुम्हारा ही ऐसा तोता हूँ मैं अकेले में उन की यादों का अपनी आहों का बोझ ढोता हूँ मैं अकेले में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद दोनों होता हूँ मैं अकेले में