जब भी वो मिलने का वा'दा करता है दिल मेरा ज़ोरों से धड़का करता है जो कुछ भी हम नीचे वाले करते हैं सब कुछ ऊपर वाला देखा करता है माली की क़िस्मत भी कैसी क़िस्मत है ग़ैरों के पेड़ों को सींचा करता है बाहर सब से हँस कर मिलता-जुलता है लेकिन घर में आ कर झगड़ा करता है हर बच्चे को शाबाशी देता है वो बस अपने बच्चों पर ग़ुस्सा करता है सच बोलूँ तो मुझ को ऐसा लगता है मेरा साया मेरा पीछा करता है सुनते हैं वो आने-जाने वालों से बस मेरे बारे में पूछा करता है केवल मेरी ग़लती हो तो मानूँ भी वो भी तो मुड़ मुड़ कर देखा करता है हम भी उस से ऐसी मस्ती करते हैं जैसी मस्ती सुई से धागा करता है