जब दुआएँ ही बे-असर जाएँ जीने वाले बता किधर जाएँ अपनी मर्ज़ी का जब न हो जीना ऐसे जीने से क्यों न मर जाएँ ये मुनासिब नज़र नहीं आता बे-ख़बर आएँ बे-ख़बर जाएँ ज़िंदगी ग़म सही मगर इस का ये तो मतलब नहीं कि मर जाएँ ज़िंदगी है इधर उधर जन्नत तेरे बंदे किधर किधर जाएँ