जब है मिटना ही तो अंदाज़ हकीमाना सही ख़ल्वत-ए-ग़म के एवज़ गोशा-ए-मय-ख़ाना सही रौनक-ए-बादा-कशी जुरअत-ए-रिंदाना सही ख़ार होना है तो मय-ख़ाना-ब-मय-ख़ाना सही इश्क़ इक क़तरे में दरिया को समो देता है अक़्ल को दीवाना समझती है तो दीवाना सही मेरे दिल में भी तजल्ली के ख़ज़ीने हैं निहाँ माह-ओ-ख़ुरशीद में अक्स-ए-रुख़-ए-जानाना सही फ़ुर्सत-ए-शौक़ ग़नीमत है उठा भी साग़र ज़िंदगी एक छलकता हुआ पैमाना सही क्या ख़बर थी कि मय-ए-नाब में इतना है सुरूर अब जो पी ली है तो इक और भी पैमाना सही मेरी वारफ़्ता-निगाही की भी कुछ क़ीमत है बज़्म की बज़्म रुख़-ए-यार का परवाना सही फिक्र-ओ-एहसास में पोशीदा हैं असरार-ए-हयात बाल-ओ-पर क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ से बेगाना सही यही क्या कम है कि बरबाद-ए-मोहब्बत है 'रईस' तेरे अल्ताफ़-ओ-इनायात से बेगाना सही