जब हमें मस्जिद जाना पड़ा है राह में इक मय-ख़ाना पड़ा है जाइए अब क्यूँ जानिब-ए-सहरा शहर तो ख़ुद वीराना पड़ा है हम न पिएँगे भीक की साक़ी ले ये तिरा पैमाना पड़ा है हर्ज न हो तो देखते चलिए राह में इक दीवाना पड़ा है ख़त्म हुई सब रात की महफ़िल एक पर-ए-परवाना पड़ा है