जब हम-नशीं हमारा भी अहद-ए-शबाब था क्या क्या नशात-ओ-ऐश से दिल कामयाब था हैरत है उस की ज़ूद-रवी क्या कहें हम आह नक़्श-ए-तिलिस्म था वो कोई या हबाब था था जब वो जल्वा-गर तो दिल-ओ-जाँ में दम-ब-दम इशरत की हद न ऐश-ओ-तरब का हिसाब था थे बाग़-ए-ज़िंदगी के उसी से ही आब-ओ-रंग दीवान-ए-उम्र का भी वही इंतिख़ाब था अपनी तो फ़हम में वही हंगाम ऐ 'नज़ीर' मजमूआ-ए-हयात का लुब्ब-ए-लुबाब था