जब ज़बानों में यहाँ सोने के ताले पड़ गए दूधिया चेहरे थे जितने वो भी काले पड़ गए डूबने से पहले सूरज के निकल आता है चाँद हाथ धो कर शाम के पीछे उजाले पड़ गए बुलबुले पानी पे मत समझो हवाएँ क़ैद हैं साँस लेने के लिए मौजों को लाले पड़ गए जब से उस पर एक चुल्लू प्यास के शोले गिरे तब से सारे जिस्म में दरिया के छाले पड़ गए क्या बता पाएँगी वो मंज़र का पस-ए-मंज़र हमें ख़ुद-नुमाई कर के जिन आँखों में जाले पड़ गए