जब कभी हादसात ने मारा यूँ लगा काएनात ने मारा वो जो मंसूर की अदा ठहरी उस को इज़हार-ए-ज़ात ने मारा लोग दुनिया का ग़म उठाते हैं हम को छोटी सी बात ने मारा हम न मुँह फेर कर गुज़र पाए चंद लम्हों के सात ने मारा दिन तो कट ही गया था उन का मगर कम-नसीबों को रात ने मारा मौत का दम सबा ग़नीमत है वर्ना पल पल हयात ने मारा