जब ख़ुद तड़प के वो मिरी बाहों में आ गए सब वलवले सिमट के निगाहों में आ गए बढ़ती गईं ज़माने की जब सर्द-मेहरियाँ दिल खिंच के ख़ुद ग़मों की पनाहों में आ गए दिल फुंक रहा है सीने में दिन-रात ऐ ख़ुदा शो'ले कहाँ से ये मिरी आहों में आ गए जितनी भी शिकनें पड़ती गईं फ़र्क़-ए-नाज़ पर इतने ही ख़म नियाज़ की राहों में आ गए कुछ सूझता नहीं है मुझे अब सिवाए ग़म जब से कि आप मेरी निगाहों में आ गए 'साहिर' सवाब में हो कशिश किस लिए कि जब सारे मज़े सिमट के गुनाहों में आ गए