जब कूचा-ए-क़ातिल में हम लाए गए होंगे पर्दे भी दरीचों के सरकाए गए होंगे मय-ख़ाने में जब ज़ाहिद पहुँचाए गए होंगे ख़ातिर के सलीक़े सब अपनाए गए होंगे जब सतवत-ए-शाही को कुछ ठेस लगी होगी सूली पे कई सरमद लटकाए गए होंगे चाँदी के घरोंदों की जब बात चली होगी मिट्टी के खिलौनों से बहलाए गए होंगे जब शीश-महल कोई ता'मीर हुआ होगा दीवारों में दीवाने चुनवाए गए होंगे वो कुछ भी कहें लेकिन तन्हाई के आलम में कुछ गीत तिरे 'बेकल' दोहराए गए होंगे