जब मिली उन से नज़र मिटने का सामाँ हो गया ऐ क़ज़ा ख़ुश हो तिरा अब काम आसाँ हो गया दिलरुबा मा'लूम होती हैं मुझे तन्हाइयाँ नक़्श हर शय का मुझे तस्वीर-ए-जानाँ हो गया मेरी ख़्वाहिश थी कि लूटूँ लज़्ज़त-ए-दुनिया मगर वुसअत-ए-हिर्स-ओ-हवा से तंग दामाँ हो गया बढ़ रही हैं क़ीमतें हर चीज़ की बाज़ार में एक ऐसा ग़म है जो अब और अर्ज़ां हो गया शोमी-ए-क़िस्मत कहें या ख़सलत-ए-इंसाँ इसे आ के क़ाबिज़ बज़्म-ए-हस्ती पर ये मेहमाँ हो गया शो'ला-ज़न है दिल यहाँ तो दाग़-हा-ए-रंज से और वो कहते हैं ख़ुश हो कर चराग़ाँ हो गया देख कर चारों तरफ़ आसार-ए-ग़म आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्या करूँ 'मग़मूम' दिल मेरा हिरासाँ हो गया