जब न शीशा है न साग़र है न पैमाना मिरा किस तरह कह दूँ ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना मिरा छुप सकेगा बाग़ में क्यूँकर मिरी वहशत का हाल पत्ते पत्ते की ज़बाँ कहती है अफ़्साना मिरा हैं मकीं अब भी दिल-ए-महज़ूँ में लाखों हसरतें ख़ैर से है आज भी आबाद वीराना मिरा हो भला क्यूँकर अयाँ मेरी हक़ीक़त आप पर आप अक्सर ग़ैर से सुनते हैं अफ़्साना मिरा साक़िया हो इस तरफ़ भी इक इनायत की नज़र तक रहा है तुझ को किस हसरत से पैमाना मिरा मैं तिरा मम्नून हूँ ऐ शो'ला-ए-बर्क़-ए-तपाँ तेरे दम से हो गया पुर-नूर काशाना मिरा दोस्तों की बात क्या है दोस्त तो फिर दोस्त थे दुश्मनों से भी रहा 'उम्मीद' याराना मिरा