जब परी-रू हिजाब करते हैं दिल के दर्पन कूँ आब करते हैं गर्दिश-ए-चश्म का दिखा यक दौर हम कूँ मस्त-ए-शराब करते हैं आतिश-ए-इश्क़ की अगन सूँ जला आशिक़ाँ कूँ कबाब करते हैं ताब दिखला जमाल-ए-रौशन का आरसी ग़र्क़-ए-आब करते हैं बैत-ए-अबरू पे तिल सूँ काजल के नुक़्ता-ए-इंतिख़ाब करते हैं अरक़-ए-गुल-रुख़ाँ को देख उश्शाक़ मैल इत्र-ए-गुलाब करते हैं देख उस के हिना कूँ मर्दुम-ए-चश्म ख़ून-ए-दिल सूँ ख़िज़ाब करते हैं सुन सुख़न-दाँ तिरी ग़ज़ल 'दाऊद' आफ़रीं कर ख़िताब करते हैं