जब से इक शोख़-नज़र फैल गई चेहरे पर आतिश-ए-बर्क़-ओ-शरर फैल गई चेहरे पर बात चुपके से मोहब्बत ने मेरे कान में की और ख़ुशियों की ख़बर फैल गई चेहरे पर राह में उस की जलाए थे उमीदों ने चराग़ रौशनी की थी किधर फैल गई चेहरे पर किस ने शीशे की तरह तोड़ दिया था उस को चोट दिल में थी मगर फैल गई चेहरे पर साल-हा-साल की रातों के परे आई थी उम्र भर को वो सहर फैल गई चेहरे पर सर्द-जज़्बों पे तरस खा के ये एहसास की धूप दिल पे करने को असर फैल गई चेहरे पर ग़म के कुछ संग-ए-गराँ जब से मिरे दिल पे गिरे इक नदी थी जो उधर फैल गई चेहरे पर ख़्वाब मंज़िल के सजाए थे मेरी आँखों ने और 'हिना' गर्द-ए-सफ़र फैल गई चेहरे पर