जब से किसी सनम का अफ़्साना जानते हैं हर संग-ओ-ख़िश्त को हम बुत-ख़ाना जानते हैं ऐ शम्अ'-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी दिल है वही हमारा महफ़िल में आप जिस को परवाना जानते हैं वो रश्क-ए-बाग़-ए-रिज़वाँ जब तक न जल्वा-गर हो हम रौज़ा-ए-इरम को वीराना जानते हैं मरक़द पे कोहकन के ऐ 'फ़ैज़' यूँ लिखा है दीवाने हैं जो मुझ को दीवाना जानते हैं