जब से पड़ी है उन से मुलाक़ात की तरह आती नहीं गिरफ़्त में हालात की तरह आया जो लिखते लिखते तिरे क़ुर्ब का ख़याल ख़त भी उलझ गया है मिरी बात की तरह तन्हाई में मिलो तो तुम्हें दिल के आस-पास दिखलाएँ एक शहर-ए-तिलिस्मात की तरह यूँही जो बाँधते रहे तम्हीद आज भी ये शब भी बीत जाएगी कल रात की तरह 'अनवार' यूँ तो दिल भी है इक अंजुमन मगर आसेब में घिरी हुई बारात की तरह