जब से तिरे लहजे में थकन बोल रही है दिल में मिरे सूरज की जलन बोल रही है क्यूँ दल के धड़कने की सदा हो गई मद्धम लगता है कि साँसों में थकन बोल रही है कहती है कि इनआ'म है ये दर-ब-दरी का पाँव में जो काँटों की चुभन बोल रही है मुद्दत से लहू-रंग है अश्कों की रवानी ज़ख़्मों में ज़माने की दुखन बोल रही है अब दूर नहीं खिल के बिखर जाने का मौसम फूलों से ये ख़ुशबू-ए-चमन बोल रही है आ जाएगा वो जिस से है मिलने की तमन्ना 'मीना' ये तिरे दिल की लगन बोल रही है