जब तबस्सुम आप फ़रमाने लगे फिर हक़ीक़त मुझ को अफ़्साने लगे ऐ मोहब्बत तुझ से क्या बिछड़े कि हम आइने में ख़ुद को अनजाने लगे गुनगुनाना चाहिए ऐसी ग़ज़ल उन की आँखों में भी नींद आने लगे मेरी तन्हाई मिरा ग़म देख कर आसमाँ भी अश्क बरसाने लगे आप को मैं दोस्त समझा था 'नज़र' आप भी अब तंज़ फ़रमाने लगे