जब तक ग़म-ए-जहाँ के हवाले हुए नहीं हम ज़िंदगी के जानने वाले हुए नहीं कहता है आफ़्ताब ज़रा देखना कि हम डूबे थे गहरी रात में काले हुए नहीं चलते हो सीना तान के धरती पे किस लिए तुम आसमाँ तो सर पे सँभाले हुए नहीं अनमोल वो गुहर हैं जहाँ की निगाह में दरिया की जो तहों से निकाले हुए नहीं तय की है हम ने सूरत-ए-महताब राह-ए-शब तूल-ए-सफ़र से पाँव में छाले हुए नहीं डस लें तो उन के ज़हर का आसान है उतार ये साँप आस्तीन के पाले हुए नहीं तेशे का काम रेश-ए-गुल से लिया 'शकेब' हम से पहाड़ काटने वाले हुए नहीं