जब तक ग़ुबार-ए-राह मिरा हम-सफ़र रहा रस्ता तो था तवील मगर मुख़्तसर रहा हर चंद हो गया है सुरय्या से भी बुलंद लेकिन शजर जफ़ा का सदा बे समर रहा अहल-ए-जुनूँ ने तोड़ दिए वो हिसार भी होश-ओ-ख़िरद का तेशा जहाँ बे-ज़रर रहा ये मय-कदा है जाए इबादत है रिंद की दुनिया का हर फ़रेब यहाँ बे असर रहा फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में इस का कोई तज़्किरा नहीं सदियों तलक बहार का जो राहबर रहा