जब तन न रहा मेरा हूँ वासिल-ए-जानाना दीवार के गिरने से हम-साया हो हम-ख़ाना आईने में देख आ कर मुँह अपना ऐ जानाना ता-क़द्र मिरी जाने काश अपना हो दीवाना उस ज़ुल्फ़ में कई दिन से बेताबी-ए-दिल गुम है ज़ंजीर झनकती नईं क्या मर चुका दीवाना बिजली मिरे नाले की जूँ चमके तो मूँद आँखें ऐ आश्ना आगे तू इतना न था बेगाना दिल शर्म-ए-मोहब्बत से तर है तू न फेर आँखें क्यूँकर पिसे चक्की में भीगा हुआ है दाना 'उज़लत' गया आँखों से इस वास्ते जी उस का है शम्अ' की चश्म-ए-तर तुरबत-गह-ए-परवाना