जब तिरी चाह में दामान-ए-जुनूँ चाक हुआ फिर कहीं जा के मुझे इश्क़ का इदराक हुआ यूँ तो इक जैसे नज़र आते हैं चेहरे लेकिन कोई ख़ुश-ख़्वाब हुआ और कोई ग़मनाक हुआ वरक़-जाँ पे लिखे मैं ने सहीफ़े दिल के इस हवाले से भी मैं शो'ला-ए-बेबाक हुआ कोई मर के भी ज़माने में अमर होता है और कोई जीते हुए भी जसद-ए-ख़ाक हुआ जिस की लहरों से जनम लेते हैं संदल से बदन उस समुंदर का ब-सद शौक़ मैं पैराक हुआ ऐ 'ख़याल' आइना-ए-हुस्न-ए-मुजस्सम की क़सम ख़ाक पर बैठ के मैं साहब-ए-अफ़्लाक हुआ