जब उस के ही मिलने से नाकाम आया तो या-रब ये दिल मेरा किस काम आया कभी उस तग़ाफ़ुल-मनुश की तरफ़ से न क़ासिद न नामा न पैग़ाम आया सद-अफ़्सोस दम अपना निकला है किस दम कि जब घर से घर तक वो गुलफ़म आया मुझे सुब्ह को क़त्ल कर वो मसीहा जो घर अपने फ़र्ख़न्दा फ़र्जाम आया किसी ने मिरी बात भी वाँ न पूछी अगरचे हर इक ख़ास और आम आया ग़रज़ फिर उसी को जो याद आई मेरी तो घबरा के जिस दम हुई शाम आया जलाया उठाया गले से लगाया अज़ीज़ो फिर आख़िर वही काम आया गई बेवफ़ाई 'नज़ीर' अब जहाँ से वफ़ा-दारियों का भी हंगाम आया