जब उसे देखा ज़रा नज़दीक से तब समझ पाए हैं थोड़ा ठीक से बात जब है दिल हो ख़ुद ही बे-क़रार वो मोहब्बत क्या मिले जो भीक से भूल बैठे क़द्र-दानी का चलन लोग हम-रिश्ता हैं अब तज़हीक से रौशनी का जश्न सा है हर तरफ़ फिर भी चेहरे हैं कई तारीक से ये जली लफ़्ज़ों में लिखा था कहीं इंक़लाब आता है इक तहरीक से अपना भी अंदाज़ है 'मीना' अलग चल रहे हैं हट के थोड़ा लीक से