जब उठे तेरे आस्ताने से जानियो उठ गए ज़माने से दिन भला इंतिज़ार में गुज़रा रात काटेंगे किस बहाने से जान भी कुछ है जो न कीजे निसार मर न जाएँगे उस के जाने से एक उस ज़ुल्फ़ से उठाया हाथ छट गए लाखों शाख़साने से कोई मर जाओ काम है उस को अपनी तरवार आज़माने से उस के तीर-ए-निगाह के आगे कुछ हमीं बन गए निशाने से ना-तवानी तुझे ग़ज़ब आए गए उस की गली के जाने से कहाँ बंगाला और कहाँ मैं 'रज़ा' बस नहीं चलता आब-ओ-दाने से