जब वो मह-ए-रुख़्सार यकायक नज़र आया उस माह की तलअत सूँ सुरज दिल में दर आया तेरे रुख़-ए-रौशन कूँ सियह ख़त में सिरीजन देखा सो कहा अब्र-ए-सियह में क़मर आया गुलशन में चल ऐ सर्व-ए-सही सैर की ख़ातिर तुझ वास्ते ले गुल तबक़-ए-नक़्द-ए-ज़र आया तुझ जाम-ए-नयन में है अजब बादा-ए-सरशार यक दीद सती जिस के हो दिल बे-ख़बर आया मुहताज-ए-कबूतर नहीं मुझ शौक़ का नामा क़ासिद हो मिरा दिल ले सजन की ख़बर आया कहते हैं सब अहल-ए-सुख़न इस शेर कूँ सुन कर तुझ तब्अ में 'दाऊद' 'वली' का असर आया