ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने निगह का जुर्म ग़ुबार-ए-अलम को पहचाने वो एक जाम कहाँ हर किसी की क़िस्मत में वो एक ज़र्फ़ कि ए'जाज़-ए-सम को पहचाने मता-ए-दर्द परखना तो बस की बात नहीं जो तुझ को देख के आए वो हम को पहचाने वो दिल जो ख़ाक हुए आज तक धड़कते हैं रह-ए-वफ़ा तिरे मोजिज़-रक़म को पहचाने सहर से पहले यहाँ आफ़्ताब उभरे हैं ख़ुलूस बंदगी-ए-चश्म-ए-नम को पहचाने ये ख़ुद-फ़रेब उजाले ये हाथ हाथ दिए दिए बुझाओ कि इंसान ग़म को पहचाने किसी ख़याल का साया किसी उमीद की धूप कोई तो आए कि दिल कैफ़-ओ-कम को पहचाने हज़ार कोस निगाहों से दिल की मंज़िल तक कोई क़रीब से देखे तो हम को पहचाने जो हम-सफ़र भी रहे हैं शरीक-ए-मंज़िल भी कुछ अजनबी तो न थे फिर भी कम को पहचाने बहुत दिनों तो हवाओं का हम ने रुख़ देखा बड़े दिनों में मता-ए-क़लम को पहचाने