जबकि ग़ुस्से के बीच आते हो लाख लाख एक की सुनाते हो कैसे हर खाए से बने पियारे बात करते ही काट खाते हो उड़ती चिड़िया को हम परखते हैं कसे बातों में तुम उड़ाते हो कहो मुझ से भी चल सकोगे क्या बैठो जी बातें क्या बनाते हो जस न तिस पर न देख दह पड़ना भले मतवाले मध के माते हो जब मैं देखूँ हूँ आँख भर के तुम्हें बदल आँखें मुझे धिराते हो क्या तुम्हारी गधी चुराई मैं गालियाँ दे जो मुँह चुराते हो जब न तब उठ के 'अज़फ़री' का गला दाब धमकाते और डराते हो