जबरन प्यास पे पहरा होते देखा है मैं ने दरिया सहरा होते देखा है आँख में मौत के काले काले आँसू हैं ख़्वाब में नींद को गहरा होते देखा है आँखें मोनालीज़ा जैसी हैं उस की ख़ामोशी को चेहरा होते देखा है दौड़ा आता है अब हर आवाज़े पर ऑफ़ीसर को बहरा होते देखा है झील किनारे बैठे बैठे क्या तुम ने शाम का रंग दोपहरा होते देखा है पेड़ की गर्दन पर अब आरा रख भी दो किस ने काठ कटहरा होते देखा है प्रीत की जीत पे हारी ख़ुद को मैं ने 'असवद' खेत समेत सुनहरा होते देखा है