ज़ब्त करना न कभी ज़ब्त में वहशत करना इतना आसाँ भी नहीं तुझ से मोहब्बत करना तुझ से कहने की कोई बात न करना तुझ से कुंज-ए-तन्हाई में बस ख़ुद को अलामत करना इक बगूले की तरह ढूँडते फिरना तुझ को रू-ब-रू हो तो न शिकवा न शिकायत करना हम गदायान-ए-वफ़ा जानते हैं ऐ दर-ए-हुस्न उम्र भर कार-ए-नदामत पे नदामत करना ऐ असीर-ए-क़फ़स सहर-ए-अना देख आ कर कितना मुश्किल है तिरे शहर से हिजरत करना फिर वही ख़ार-ए-मुग़ीलाँ वही वीराना है ऐ कफ़-ए-पा-ए-जुनूँ फिर वही ज़हमत करना सूरत माह-ए-मुनीर अब के सर-ए-बाम आ कर हम ग़रीबों को भी कुछ रंज इनायत करना जमा करना तह-ए-मिज़्गाँ तुझे क़तरा क़तरा रात भर फिर तुझे टुकड़ों में रिवायत करना काम ऐसा कोई मुश्किल तो नहीं है 'ख़ावर' मगर इक दस्त-ए-हिना-रंग पे बैअत करना