ज़ब्त से ना-आश्ना हम सब्र से बेगाना हम क्यूँ किसी से माँगते जाएँ चराग़-ए-ख़ाना हम ख़ुद ही साज़-ए-बे-ख़ुदी को छेड़ देते हैं कभी ख़ुद ही सुनते हैं हदीस-ए-साग़र-ओ-पैमाना हम दफ़अतन साज़-ए-दो-आलम बे-सदा हो जाएगा कहते कहते रुक गए जिस दिन तिरा अफ़्साना हम शम्-ए-ऐवान-ए-हरम हो या चराग़-ए-ताक़-ए-दैर हम को दोनों से तअल्लुक़ है कि हैं परवाना हम दिल जला फिर ख़ुद जले फिर सारी दुनिया जल उठी सोज़ लाए थे ब-मिकदार-ए-पर-परवाना हम जब हमें दीवाना बनना है तो कैसी मस्लहत मस्लहत को भी बना लेंगे तिरा दीवाना हम बस-कि है 'सीमाब' बे-मेहरी यगानों का शिआर हैं रहीन-ए-इल्तिफ़ात-ए-ख़ातिर-ए-बेगाना हम