जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है ज़रा सी बात थी लेकिन उदास कैसा है न जाने कौन फ़ज़ाओं में ज़हर घोल गया हरा-भरा सा शजर बे-लिबास कैसा है मिरी तरह से न हक़ बात तुम कहो देखो बला का साया मिरे आस-पास कैसा है ये फ़ैसला है कि हम अपने हक़ से बाज़ आएँ तो फिर ये लहजा ये तिरा, इल्तिमास कैसा है वही जो शहर के लोगों में था बहुत बद-नाम वही तो आज सरापा सिपास कैसा है मैं क्या कहूँ कि मैं क्यूँ दिल से हो गया मजबूर तुम ही बताओ कि वो ख़ुश-लिबास कैसा है