एक मा'सूम तमन्ना की फ़ज़ा थी कल तक ज़िंदगी ऐसी कहाँ होश-रुबा थी कल तक ग़ैज़ आँधी का बना अब है मुक़द्दर मेरा दिल के आँगन में महकती सी सबा थी कल तक नग़्मगी आ गई किस तौर से उस के लब पर जिस की आवाज़ तरन्नुम से जुदा थी कल तक आज ख़ामोश बहुत बज़्म-ए-बहाराँ क्यूँ है गुनगुनाते से लिबादे में हवा थी कल तक हुस्न की शोख़-नज़र माँगे है क़ीमत अपनी झुकती आँखों के दरीचे में हया थी कल तक ये जो हंगामों से मरबूत है महफ़िल मेरी कैफ़-ज़ा दिल-रुबा बुलबुल की सदा थी कल तक सर-निगूँ वक़्त के क़दमों में है ख़्वाहिश अपनी वर्ना हर साँस में इक मौज-ए-अना थी कल तक अब कहाँ शौक़ को मिलता है बढ़ावा 'जाफ़र' नर्म पलकों में घुली एक अदा थी कल तक