जग है मुश्ताक़ पिव के दर्शन का किस कूँ नीं एहतियाज दर्पन का साफ़ दिल है जो आरसी मानिंद नित है हैराँ जमाल-ए-रौशन का गरचे होना है ऐब-पोशी जहाँ कस्ब कर इख़्तियार सोज़न का क्यूँ न हुए आशिक़ी में ख़ौफ़ रक़ीब हर सफ़र में ख़तर है रहज़न का ज़ोहद-ए-ज़ाहिद है ख़ौफ़-ए-महशर सूँ ताब नामर्द कूँ कहाँ रन का ख़ाक हो यार की गली मत छोड़ गरचे कुछ मुद्दआ है दामन का सब्र कर हिज्र में तूँ ऐ 'दाऊद' देखना है अगर सिरीजन का