जाग उठे बाम-ओ-दर चराग़ जले कौन आया इधर चराग़ जले दिन की पामाल फ़िक्र को है शर्त तेरी जानिब सफ़र चराग़ जले ज़ुल्फ़-ए-तूफ़ाँ से यूँ भी छेड़ सही वो बुझाए इधर चराग़ जले दिन में वो जिस्म है जुनूँ-अफ़रोज़ इक क़यामत मगर चराग़ जले वाइज़-ओ-मोहतसिब भी जाम-ब-लब हम को आए नज़र चराग़ जले आख़िर-ए-शब दिलों पे है भारी हम-नफ़स ता सहर चराग़ जले सरगुज़श्त-ए-वफ़ा है तूलानी बस यही मुख़्तसर चराग़ जले आज मेहमाँ है एक शब-अफ़रोज़ आरज़ूओं का हर चराग़ जले ज़िंदगी शब-चराग़ है 'सैफ़ी' अब रक़ीबों के घर चराग़ जले