जगह जगह से शिकस्ता हैं ख़म हैं दीवारें न जाने कितने घरों का भरम हैं दीवारें छतों का ज़िक्र ही क्या उन को ले उड़ी है हवा अब हादसात के ज़ेर-ए-क़दम हैं दीवारें बरसती बारिशों में होंगी मोजिब-ए-ख़तरा अभी तो धूप में अब्र-ए-करम हैं दीवारें हमारे ख़ेमे तनाबों के बल पे क़ाएम हैं छतें तो ख़ूब मयस्सर हैं कम हैं दीवारें क़दीम शहरों में हर-सू क़दम क़दम बिखरी पुरानी राह-गुज़ारों में ज़म हैं दीवारें कहीं दरीचे हैं शान-ओ-शिकोह के मर्सियाँ-ख़्वाँ कहीं मज़ार-ए-वक़ार-ओ-हशम हैं दीवारें ये फ़र्त-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी का है असर 'मंशा' ज़मीं मकानों की गीली है नम हैं दीवारें