जागना साए में और धूप में सोना उस का उस के एहसास से साबित था न होना उस का दिल-शिकस्ता हो वो क्यों सर-फिरी बातों से मिरी मैं ने बचपन में भी तोड़ा था खिलौना उस का इक सितम-पेशा तबीअत का पता देता है काग़ज़ी नाव को बारिश में डुबोना उस का फिर कोई याद छुड़ा लेती है उँगली मुझ से याद आता है किसी भीड़ में खोना उस का एक ही टूटे हुए पुल के थे राही दोनों मौत से बढ़ के था वो दूर से रोना उस का ख़ुद-शनासी का कोई इल्म न था 'आह' उसे लोग मिट्टी में मिलाते रहे सोना उस का