जहाँ चाहो मेरा नाम लिखो, जो चाहो तुम इल्ज़ाम लिखो मुझे इश्क़ ने बरसों क़ैद रखा मुझे, हिज्र की गहरी शाम लिखो मिरे जोश-ए-जुनूँ का ये तन्हा सफ़र, ऐ चारागरो तुम्हें क्या है ख़बर मिरे पास है जो भी ये दर्द-ए-हुनर, उसे तुम मेरे ही नाम लिखो मिरे लब पे अभी वो सवाल है क्यूँ? मिरे दिल में अभी वो मलाल है क्यूँ? मिरे चारों-जानिब जाल है क्यूँ? मिरे ख़्वाब का अब अंजाम लिखो ये इश्क़-ए-मुसलसल सावन है, मन आग, तो जिस्म इक ईंधन है बस मौत है कब ये जीवन है? उसे ज़हर-भरा इक जाम लिखो कभी दश्त में ख़ार पे है चलना, कभी आग का फूल में है ढलना कभी तन्हा धूप में है चलना, उसे इश्क़ का ही इनआ'म लिखो हर ख़्वाहिश है सर-ए-नोक-ए-सिनाँ, हर चाहत है बस नौहा-कुनाँ मालूम नहीं ख़ुद में हूँ कहाँ, अब चाँद नहीं सर-ए-बाम लिखो ये हिज्र जो इक तूलानी है, मिरे पास जो एक निशानी है 'शाहीन' ये मिरी जो कहानी है, उसे ख़ुशियों में कोहराम लिखो