जहाँ जहाँ भी हवस का ये जानवर जाए दिलों से मेहर-ओ-मोहब्बत की फ़स्ल चर जाए वहीं से हूँ मैं जहाँ से दिखाई देता हूँ वहीं तलक हूँ जहाँ तक मिरी नज़र जाए हुदूद-ए-ज़ात से आगे ख़ुदाओं की हद है मैं सोचता हूँ अगर ज़ेहन काम कर जाए भरी पड़ी है उफ़ूनत से इंच इंच ज़मीं उस एक फूल से ख़ुशबू किधर किधर जाए वो बाद-ए-तुंद है हर पेड़ की ये कोशिश है हवा के साथ कोई दूसरा शजर जाए 'नसीम' गाँव की मस्जिद में रात काटेगा इक अजनबी सा मुसाफ़िर है किस के घर जाए