जहाँ में हर बशर मजबूर हो ऐसा नहीं होता हर इक राही से मंज़िल दूर हो ऐसा नहीं होता तअ'ल्लुक़ टूटने का ग़म कभी हम से भी पूछो तुम तुम्हारा ज़ख़्म ही नासूर हो ऐसा नहीं होता गवाहों को तो बिक जाने की मजबूरी रही होगी हमें भी फ़ैसला मंज़ूर हो ऐसा नहीं होता मोहब्बत जुर्म है तो फिर सज़ा भी एक जैसी हो कोई रुस्वा कोई मशहूर हो ऐसा नहीं होता किताबों की हैं ये बातें किताबों ही में रहने दो कोई मुफ़्लिस कभी मसरूर हो ऐसा नहीं होता कोई मिस्रा अगर दिल में उतर जाए ग़नीमत है तग़ज़्ज़ुल से ग़ज़ल भरपूर हो ऐसा नहीं होता कभी पीता है 'अम्बर' ज़िंदगी के ग़म भुलाने को वो हर शब ही नशे में चूर हो ऐसा नहीं होता